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- साहित्यिक - विमर्श Literature Discourse
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- दलित एवं आदिवासी - विमर्श Dalit and Tribal Discourse
- स्त्री - विमर्श Feminist Discourse
- शिक्षा - विमर्श Education Discourse
- बाल - विमर्श Child Discourse
- भाषिक - विमर्श Language Discourse
- समसामायिक - विषय Current Affairs
- शोध आलेख Research Article
- साक्षात्कार Interview
- अनुवाद Translation
- रोशनदान
- प्रवासी साहित्य Diaspora Lietrature
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विषय सूची/Index
जनकृति अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ISSN 2454-2725, Impcat Factor: 2.0202 [GIF]
Jankriti International Magazine www.jankritipatrika.in
Vol.3, issue 34-35, February-March 2018. वर्ष 3, अंक 34-35, फरवरी-मार्च 2018
नवीन अंक की पीडीऍफ़ प्राप्त करने हेतु लिंक पर क्लिक करें- जनकृति फरवरी-मार्च सयुंक्त अंक 2018
साहित्यिक विमर्श/ Literature Discourse
कविता [12-20]
शालिनी मोहन, संगीता केशरी, रोहित ठाकुर, पिंकी कुमारी बागमार प्रियंका शर्मा, प्रगति गुप्ता, विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'
ग़ज़ल [21-23]
- डॉ. कुंदन सिंह
- नवीन मणि त्रिपाठी
कहानी
- गौकशी: अनवर सुहैल [24-33]
- हाशिए की क्रांति: शिवानी कोहली [34-41]
- दूध: भूमिका द्विवेदी अश्क [42-47]
लघुकथा
- इतिहास: ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ [48]
- छपाक्: राजेंद्र ओझा [49]
- ईमानदारी: संजय वर्मा ‘दॄष्टि’ [50]
पुस्तक समीक्षा
- राजनीति की किताब [लेखक- अभय कुमार दुबे] समीक्षक: रत्नेश कुमार यादव [51-57]
- काचू की टोपी (बालकथा संग्रह, लेखक- गोविन्द शर्मा): समीक्षक- डॉ. प्रीति प्रवीण खरे [58-61]
- हिंदी आलोचना में नया अध्याय (संदर्भ-थर्ड जेंडर : कथा आलोचना): डॉ वेदप्रकाश अमिताभ [62-63]
व्यंग्य
- ‘फर्जीवाड़ा स्टेशन’ पर खडा देश: फारूक आफरीदी [64-65]
- पकौड़ा डाट काम: विवेक रंजन श्रीवास्तव [66-67]
- कवियों के लिफाफे: मुकेश कुमार ऋषि वर्मा [68]
यात्रा वृत्तांत [69-80]
- कुमाऊं के चार दिन: समीक्षा: जीएफ सबरी
किस्से कलम के
- एक यायावर का जीवन (संदीप तोमर): दिलीप कुमार [81-83]
- रामविलास शर्मा और अमृतलाल नागर की दोस्ती: रवि रंजन [84-94]
लोक साहित्य
- लोक साहित्य – महत्व और प्रासंगिकता (नैतिक मूल्य - जीवन और आदर्श): नवमी एम [95-102]
स्मृति शेष
- विश्वविद्यालयी भ्रष्टाचार की सच्चाई बयां करता दूधनाथ सिंह जी का उपन्यास ‘नमो अन्धकार’: डॉ. अरविंद कुमार [103-108]
- कल, आज और कल को गुनते-बुनते कवि केदारनाथ सिंह: प्रोमिला [109-116]
साहित्यिक लेख
- मैं हिन्दू हूँ: कट्टरता के खिलाफ मनुष्यता की लड़ाई- डॉ. नवाब सिंह [117-123]
- समकालीन युग बोध के कवि कुँवर बेचैन: गीता पंडित [124-129]
- उपन्यास विधा की एक संक्षिप्त विकास यात्रा: डा.सुमा.एस [130-133]
- ‘नरेन्द्र कोहली’ के उपन्यासों में चित्रित नारी स्वतंत्रता की सार्वकालिक समस्याएँ: अमित कुमार दीक्षित [134-139]
- देवेन्द्रनाथ शर्मा के जन्मशताब्दी वर्ष में ‘अलंकार-अलंकार्य-विमर्श- रवि रंजन [140-143]
रोशनदान [144-149]
- असम के दिमासा कछारी और सोनोवाल कछारी समुदाय की जीवन शैली एवं आध्यात्मिक प्रतीक: वीरेंद्र परमार [आलेख]
मीडिया- विमर्श/ Media Discourse
- महिला पत्रकारिता : आजादी से पूर्व बनाम आजादी के बाद: डॉ. मधुलिका बेन पटेल [शोध आलेख] [150-155]
- ‘कर्मवीर’ और हिंदी पत्रकारिता की दिशा: संतोष कुमार मिश्रा [शोध आलेख][156-158]
- ग्रामीण श्रोताओं के लिए भाषा तथा विषय सामग्री के आधार पर प्रभावी प्रसारण मॉडल का विकास: डॉ. रजनी राठी [शोध आलेख][159-167]
- मीडिया के दायित्व: शालिनी श्रीवास्तव [लेख] [168-169]
कला- विमर्श/ Art Discourse
- पारसी रंगमंच और आग़ा ‘हश्र’ काश्मीरी: रवीन्द्र एम. अमीन [शोध आलेख][170-174]
- हिंदी नाटक और रंगमंच: डॉ. हितेंद्र कुमार मिश्र [शोध आलेख][175-180]
- हिंदी रंगमंच का सामान्य सर्वेक्षण एवं समकालीन गतिविधियों का परिचय- प्रकृति राय [शोध आलेख][181-191]
- लोकगीतों का समाजशास्त्र: एक विमर्श- देवी प्रसाद एवं सविता यादव [शोध आलेख][192-202]
- पेरियार ललई के नाटकों में जातीय एवं ब्राह्मणवादी-व्यवस्था का खंडन: विजय कुमार [शोध आलेख][203-210]
दलित एवं आदिवासी- विमर्श/ Dalit and Tribal Discourse
- दलित अस्मिता एवं चुनौतियाँ: आशीष [शोध आलेख][211-215]
- हिंदी दलित उपन्यास : इतिहास बोध और सामाजिक सरोकार: डॉ. चैनसिंह मीना [शोध आलेख] [216-227]
- डॉ. भीमराव अम्बेडकर: सामाजिक चिंतन के परिदृश्य- डॉ. उषा सिंह [शोध आलेख][228-231]
- समकालीन हिंदी उपन्यासों में आदिवासी विमर्श: यशपाल सिंह राठौड़ [शोध आलेख][232-241]
- समकालीन हिन्दी कहानियों में आदिवासी समाज: डॉ. सुमित कुमार मीना [शोध आलेख] [242-249]
- अनुसूचित जनजातियाँ तथा विकास कार्यक्रम: सुधीर कुमार [शोध आलेख][250-264]
- कलम के लोकतंत्र में झारखंड के आदिवासी स्वर: डॉ. पुनीता जैन [शोध आलेख][265-276]
- कहानी-झारखंड और आदिवासी जीवन: डॉ. आशुतोष कुमार झा [शोध आलेख][277-287]
- विकास, विस्थापन और आदिवासी समाज : समकालीन हिन्दी कहानी के विशेष संदर्भ में- अश्वति सी. आर. [लेख] [288-291]
- ‘क्यों बेजुबान हैं, आदिवासी ?’ रिपोर्ताज संग्रह में अभिव्यक्त आदिवासी समाज का सच- लल्टू कुमार [शोध आलेख][292-297]
स्त्री- विमर्श/ Feminist Discourse
- Constitutional and statutory safeguards for women in India: Alka Chandra [Research Article][298-307]
- स्त्री विमर्श का वैचारिक परिप्रेक्ष्य: राम बचन यादव [शोध आलेख][308-311]
- स्त्री विमर्श और यौनिकता के प्रश्न : मात्र देह नहीं है औरत (‘छिन्नमस्ता’ और ‘नर नारी’ उपन्यास के विशेष सन्दर्भ में): निक्की कुमारी [शोध आलेख][312-318]
- एक अमानवीय प्रथा स्त्री सुन्नत: उर्मिला कुमारी [शोध आलेख][319-325]
- वर्तमान महिला आंदोलन एवं चुनौतियाँ- कु.अनीता [शोध आलेख][326-331]
- वैश्विक परिप्रेक्ष्य में महिला सशक्तिकरण के प्रयास: डॉ. अजय कुमार सिंह [शोध आलेख][332-334]
- कंवर जनजातीय महिलाओं में प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी समस्या: आरिफा खातून [शोध आलेख][335-340]
- उन्नीसवीं सदी में स्त्री चेतना का विकास और ‘ताराबाई शिंदे’: ऋचा सिंह [शोध आलेख][341-348]
- आधुनिक हिंदी उपन्यासों में मुस्लिम महिला पात्र: समस्याएं और संघर्ष- विरेंदर [शोध आलेख] [349-363]
- ‘कालाजल’ उपन्यास में स्त्री जीवन: अरुण कुमार पाण्डेय [शोध आलेख][364-370]
- औरत: एक दृष्टि में (औरत का कोई देश नहीं-तसलीमा नसरीन) - अनुराधा [शोध आलेख][371-376]
- पवन करण की कविताओं में स्त्री प्रतिरोध का स्वर: अंजली पटेल [शोध आलेख][377-383]
- औरत और समाज: संगीता सहाय [लेख][384-389]
- समकालीन हिंदी ग़ज़ल में स्त्री स्वर: जुगुल किशोर चौधरी [शोध आलेख][390-400]
- आधुनिक समाज एवं उत्पीड़ित नारी: डॉ. अभिषेक पांडेय [शोध आलेख][401-405]
- आर्थिक आत्मनिर्भरता के प्रश्न और स्त्री: डॉ. सूर्या ई. वी. [शोध आलेख][406-411]
बाल- विमर्श/ Child Discourse
- मेरा बचपन मेरे कंधे पर आत्मकथा में बाल शोषण: डॉ. बलीराम संभाजी भुक्तरे [शोध आलेख][412-418]
- 21वीं शताब्दी में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और बाल साहित्य: डॉ. कुमारी उर्वशी [शोध आलेख][419-422]
भाषिक- विमर्श/ Language Discourse
- संगणकीय साक्षरता, मीडिया और हिंदी साहित्य: डॉ. साताप्पा लहू चव्हाण [शोध आलेख] [423-431]
- विदेशों में हिंदी का स्वरूप वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदी की स्थिति के सन्दर्भ में- तेजस पूनिया [शोध आलेख][432-439]
- हिंदी साहित्य सम्मलेन की प्रासंगिकता: आकांक्षा भट्ट [शोध आलेख][440-443]
- मालवी और हिन्दी भाषा की संरचना: नाहिद कुरेशी एवं शमशुद्दीन कुरेशी [लेख][444-452]
- हिंदी भाषा के विकास में विभिन्न प्रांतों का योगदान: डॉ. प्रमोद पांडेय [लेख][453-464]
शिक्षा- विमर्श/ Education Discourse
- लैंगिक समानता, शिक्षा और नीतियाँ: बद्री शंकर दास [शोध आलेख][465-471]
- शिक्षा व्यवस्था व अध्यापक की भूमिका: डा. अमितेश कुमार शर्मा एवं सीमा रानी गौड़ [शोध आलेख][472-475]
- वर्तमान शिक्षा व्यवस्था: दशा एवं दिशा: राजीव कुमार [लेख][476-477]
- हिंदी शिक्षण में रचनात्मकता : नवीन अनुप्रयोग- मनीष खारी [शोध आलेख][478-483]
- छत्तीसगढ़ में जनजातीय शिक्षा: सरकारी प्रयासों का अवलोकन: धीरेन्द्र सिंह एवं डॉ. रुपेन्द्र कवि [484-502]
समसामयिक विषय/ Current Affairs
- धारावी: वास्तविकता, रोजगार और संभावनाएं: शिव गोपाल [शोध आलेख][503-510]
- पश्चिमी समाज में रंगभेद एवं नस्लीय समस्या: डॉ. प्रतिभा पाण्डेय [शोध आलेख][511-515]
- संगीत चिकित्सा (रक्तचाप एवं मानसिक रोगियों के सन्दर्भ में: रचना सिंह [शोध आलेख][516-517]
- उच्च रक्तचाप का प्रबंधन: अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और शवासन के विशेष संदर्भ में: दिनेश कुमार [शोध आलेख][518-521]
शोध आलेख/ Research Article
- गिरमिटिया इतिहास शोध: स्रोत एवं प्रविधि- डॉ. मुन्नालाल गुप्ता [522-527]
- पोस्ट बॉक्स न. 203 नाला सोपारा : किन्नरों की ह्रदय विदारक कथा- स्वाति चौधरी [528-534]
- विद्रोही की कविताओं में किसान चेतना: सत्यवन्त यादव[535-541]
- नागार्जुन की कविताओं में राजनीतिक बोध: एस.के .सुधांशु [542-545]
- शमशेर बहादुर सिंह की काव्य दृष्टि: प्रो रणजीत कुमार सिन्हा [546-548]
- समकालीन कविता में मानवीय संसक्ति- डॉ. धीरेन्द्र सिंह [549-556]
- श्रीप्रकाश शुक्ल की कविताओं का समीक्षात्मक अध्ययन (‘ओरहन और अन्य कविताएँ’ काव्य-संग्रह के विशेष संदर्भ में): विकल सिंह [557-564]
- अख्यायिका, प्रतिरोध एवं भक्ति-काव्य: बहेणाबाई का हिन्दुस्तानी काव्य- मोबिन जहोरोद्दीन [565-578]
- जयनंदन की रचनाओं में स्वयं जयनंदन: डॉ. गोपाल प्रसाद [579-583]
- ग्रामीण यथार्थ और प्रेमचंद: मधुलिका कुमारी [584-587]
- ‘उत्तररामचरितम्’ में लोकजीवन: डॉ.अरुण कुमार निषाद [588-591]
- ‘पथ के साथी’ में स्मृति का सृजनात्मक उपयोग: ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह [592-597]
- छत्तीसगढ़ी समाज में लोक संस्कृति का चित्रण: प्रीति [598-604]
- लोक संस्कृति और आधुनिकता: डॉ. अमृता सिंह [605-612]
- भीष्म साहनी के उपन्यास और मानव संबंधों की विविधता: निशा उपाध्याय [613-620]
- हिंदी-उर्दू ग़ज़ल और गंगा जमुनी तहज़ीब- मो. आसिफ अली [621-623]
- राजेश जोशी की कहानियों में व्यक्त समकालीन परिवेश: मो. रियाज़ खान एवं डॉ. इस्पाक अली [624-630]
- शांतिनिकेतन में गांधीजी: बिजय कुमार रबिदास [631-637]
- तुलसीदास के काव्य में लोकमंगल विधान: रेखा कुमारी [638-644]
- हिन्दी साहित्य में आदिकालीन प्रमुख कवियों का प्रदान: डॉ. नयना डेलीवाला [645-649]
- हिन्दी उपन्यासों में प्रवासी नारी : अस्मिता एवं स्वायत्ता का जयघोष- प्राणु शुक्ला [650-653]
- लोकप्रिय साहित्य की अवधारणा: सुशील कुमार [654-657]
- समकालीन हिंदी ग़ज़ल में मानवीय मूल्य: नूतन शर्मा [658-662]
- भारतीय साहित्येतिहास में नवजागरण: ज्ञान चन्द्र पाल [663-667]
- राजनैतिक प्रतिरोध के कवि धूमिल: डा० रमेश प्रताप सिंह [668-673]
- दुष्यन्त कुमार की ग़ज़लों में सार्वभौमिक मूल्य: पूनम देवी [674-680]
- अरुण कमल का वैचारिक गद्य: डॉ. राकेश कुमार सिंह [681-691]
- शरद सिंह के उपन्यासों ‘पिछले पन्ने की औरतें’ एवं ‘पाँचकौड़ी’ में नारी जीवन की समस्याओं का चित्रण: रक्षा रानी [692-702]
- रूसी क्रान्ति का भारतीय राष्ट्रवाद पर प्रभाव: डॉ. संतोष कुमार सैन [703-717]
- युवा कहानी आंदोलन का संदर्भ और प्रकृति: राज कुमारी [718-720]
- शिवमूर्ति की कहानी ‘तिरिया चरित्तर’ में ग्रामीण स्त्री की पीड़ा: प्रदीप कुमार [721-724]
- संतों की वाणी में लोक–तत्वों की प्रासंगिकता: डॉ. बलवीर सिंह ‘राना’ [725-731]
- ‘आधा गाँव’ उपन्यास का समाज बोध: सुशील कुमार [732-737]
- मुक्तिबोध की काव्य-संवेदना: चिंतन और सृजन का सह-अस्तित्वबोध- डॉ. धनंजय कुमार साव [738-747]
साक्षात्कार/ Interview
- कवि-आलोचक प्रो. ए. अरविंदाक्षन जी से डॉ. प्रभाकरन हेब्बार इल्लत की बातचीत [748-763]
- गुजराती के मूर्धन्य कथाकार दिनकर जोशी से संतोष श्रीवास्तव की बातचीत [764-768]
अनुवाद/ Translation
- Translation between Bhasas: A Cultural and Historical Necessity- Dr. Pankaj Kumar Shukla [769-774]
- हिन्दी में रोज़गार के लिए अनुवाद की भूमिका: डॉ. राजेन्द्र परमार [775-778]
- पुर्तगाली कहानी ‘द टेल ऑफ़ ऐन अननोन आइलैंड’ [लेखक- जोसे डिसूज़ा सारामागो] का हिंदी अनुवाद ‘अनजाने द्वीप की कथा: अनुवादक- सुशांत सुप्रिय [779-781]
- गुजराती कहानी ‘भैयादादा’ [लेखक- स्वर्गीय धूमकेतु] का हिंदी: अनुवादक- डॉ. रजनीकांत एस. शाह [782-787]
- अभिग्रहण सिद्धांत और अनुवाद अवधारणा : एक दृष्टिकोण- स्वाति डांगी [788- 796]
- अनुवाद : कला व शिल्प अथवा विज्ञान- अमर कुमार चौधरी [797-801]
प्रवासी साहित्य/ Diaspora Literature
- दिव्या माथुर की ‘ठुल्ला किलब’ में वृद्ध विमर्श: कुमारी उर्वशी [802-805]
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परिचय
जनकृति अंतरराष्ट्रीय पत्रिका, जनकृति (साहित्यिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था) द्वारा प्रकाशित की जाने वाली बहुभाषी अंतरराष्ट्रीय मासिक पत्रिका है. पत्रिका मार्च 2015 से प्रारंभ हुई, जिसका उद्देश्य सृजन के प्रत्येक क्षेत्र में विमर्श के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण विषयों को पाठकों के समक्ष रखना है. इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए पत्रिका में साहित्य, कला, मीडिया, शोध, शिक्षा, दलित एवं आदिवासी, समसामायिक विमर्श स्तंभ रखे गए हैं साथ ही अनुवाद, साक्षात्कार, प्रवासी साहित्य जैसे महत्वपूर्ण स्तंभ भी पत्रिका में शामिल किए गए हैं. पत्रिका का एक उद्देश्य सृजन क्षेत्र के हस्ताक्षरों समेत नव लेखकों को प्रमुख रूप से मंच देना है. पत्रिका में शोधार्थी, शिक्षक हेतु शोध आलेख का स्तंभ भी है, जिसमें शोध आलेख प्रकाशित किए जाते हैं. पत्रिका वर्त्तमान में यूजीसी द्वारा जारी सूची के साथ-साथ विश्व की 9 से अधिक रिसर्च इंडेक्स में शामिल है. शोध आलेखों की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए विषय विशेषज्ञों द्वारा शोध आलेख का चयन किया जाता है. पत्रिका समाज एवं सृजनकर्मियों के मध्य एक वैचारिक वातावरण तैयार करना चाहती है, जो आप सभी के सहयोग से ही संभव है अतः पत्रिका में प्रकाशित सामग्रियों पर आपके विचार सदैव आमंत्रित हैं.-कुमार गौरव मिश्रा (संस्थापक एवं प्रधान संपादक)
